मुमुचु: प्रेमबाष्पौघं विरहौत्कण्ठ्यकातरा: ।
राजा तमर्हयाञ्चक्रे कृतासनपरिग्रहम् ॥ ६ ॥
अनुवाद
चिन्ता और लंबे समय तक अलग रहने के कारण, वे सभी प्यार के वशीभूत होकर रोने लगे। तब राजा युधिष्ठिर ने उनके बैठने के लिए आसन की व्यवस्था की और उनका स्वागत-सत्कार किया।