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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 1: सृष्टि
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अध्याय 13: धृतराष्ट्र द्वारा गृह-त्याग
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श्लोक 54
श्लोक
1.13.54
जितासनो जितश्वास: प्रत्याहृतषडिन्द्रिय: ।
हरिभावनया ध्वस्तरज:सत्त्वतमोमल: ॥ ५४ ॥
अनुवाद
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वह योगी जिसने आसनों और श्वास लेने की क्रिया में सिद्धि प्राप्त कर ली है, अपनी इंद्रियों को पूर्ण ईश्वर की ओर मोड़कर भौतिक प्रकृति के गुणों जैसे सत्व, रज और तमस के दूषणों से मुक्त हो जाता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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