श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 13: धृतराष्ट्र द्वारा गृह-त्याग  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  1.13.5 
 
 
प्रत्युज्जग्मु: प्रहर्षेण प्राणं तन्व इवागतम् ।
अभिसङ्गम्य विधिवत् परिष्वङ्गाभिवादनै: ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  असीम हर्ष के साथ वे सभी संतों के पास पहुंचे, मानों उनके शरीर में दोबारा प्राणों का संचार हुआ हो। उन्होंने एक-दूसरे को प्रणाम किया और गले मिलते हुए स्वागत किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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