श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 13: धृतराष्ट्र द्वारा गृह-त्याग  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  1.13.20 
 
 
येन चैवाभिपन्नोऽयं प्राणै: प्रियतमैरपि ।
जन: सद्यो वियुज्येत किमुतान्यैर्धनादिभि: ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  जो भी सर्वोच्च काल (अनंत समय) के प्रभाव में आता है उसे अपने सबसे प्यारे जीवन काल को अर्पित करना पड़ता है, अन्य चीजों जैसे धन, सम्मान, बच्चे, जमीन और घर का तो कहना ही क्या।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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