हिरण्यं गां महीं ग्रामान् हस्त्यश्वान्नृपतिर्वरान् ।
प्रादात्स्वन्नं च विप्रेभ्य: प्रजातीर्थे स तीर्थवित् ॥ १४ ॥
अनुवाद
पुत्र के जन्म पर राजा ने ब्राह्मणों को सोना, ज़मीन, गाँव, हाथी, घोड़े और अच्छा खाना दान में दिया, क्योंकि वह जानते थे कि कब, कैसे और किसको दान देना चाहिए।