श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 11: भगवान् श्रीकृष्ण का द्वारका में प्रवेश  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  1.11.25 
 
 
नित्यं निरीक्षमाणानां यदपि द्वारकौकसाम् ।
न वितृप्यन्ति हि द‍ृश: श्रियो धामाङ्गमच्युतम् ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  द्वारका के वासी समस्त सौन्दर्य के आगार अच्युत भगवान् को नित्य निरखते रहते थे, किन्तु फिर भी वे कभी तृप्त नहीं होते थे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.