श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 10: द्वारका के लिए भगवान् कृष्ण का प्रस्थान  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  1.10.36 
 
 
तत्र तत्र ह तत्रत्यैर्हरि: प्रत्युद्यतार्हण: ।
सायं भेजे दिशं पश्चाद्गविष्ठो गां गतस्तदा ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  इन प्रांतों से होकर यात्रा करते समय सर्वत्र उनका स्वागत किया गया, पूजा की गई और उन्हेंविविध भेंटें प्रदान की गईं। संध्या समय, सभी जगहों पर संध्या-कालीन अनुष्ठान (कृत्य) करने के लिए भगवान अपनी यात्रा स्थगित करते थे। सूर्यास्त के बाद नियमित रूप से ऐसा किया जाता था।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध एक के अंतर्गत दसवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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