स वा अयं यत्पदमत्र सूरयो
जितेन्द्रिया निर्जितमातरिश्वन: ।
पश्यन्ति भक्त्युत्कलितामलात्मना
नन्वेष सत्त्वं परिमार्ष्टुमर्हति ॥ २३ ॥
अनुवाद
यही वही सर्वोच्च पुरुषोत्तम भगवान हैं जिनके परम रूप का अनुभव महान भक्तों द्वारा किया जाता है जो कठोर भक्ति सेवा और जीवन और इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण के द्वारा भौतिक चेतना से पूर्ण रूप से शुद्ध होते हैं। और यही अस्तित्व को शुद्ध करने का एकमात्र तरीका है।