मृदङ्गशङ्खभेर्यश्च वीणापणवगोमुखा: ।
धुन्धुर्यानकघण्टाद्या नेदुर्दुन्दुभयस्तथा ॥ १५ ॥
अनुवाद
हस्तिनापुर के राजमहल से प्रस्थान करते समय भगवान के सम्मान में नाना प्रकार के ढोल—जैसे मृदंग, ढोल, नगाड़े, धुंधुरी और दुन्दुभी—तथा नाना प्रकार की वंशियाँ, वीणा, गोमुख और भेरियाँ एक साथ बज उठीं।