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अध्याय 10: द्वारका के लिए भगवान् कृष्ण का प्रस्थान
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श्लोक 13
श्लोक
1.10.13
सर्वे तेऽनिमिषैरक्षैस्तमनुद्रुतचेतस: ।
वीक्षन्त: स्नेहसम्बद्धा विचेलुस्तत्र तत्र ह ॥ १३ ॥
अनुवाद
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उन सबके मन उनकी आकर्षण-रूपी कड़ाही में पिघल रहे थे। वे बिना पलक झपकाए उन्हें देखे जा रहे थे और (प्रेम की डोर से बंधे हुए) व्याकुलता से इधर-उधर घूम रहे थे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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