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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 2: महर्षि अगस्त्य के द्वारा पुलस्त्य के गुण और तपस्या का वर्णन तथा उनसे विश्रवा मुनि की उत्पत्ति का कथन
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श्लोक 31-32h
श्लोक
7.2.31-32h
यस्मात् तु विश्रुतो वेदस्त्वयेहाध्ययतो मम॥ ३१॥
तस्मात् स विश्रवा नाम भविष्यति न संशय:।
अनुवाद
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देवी! जब मैं यहाँ वेद का अध्ययन कर रहा था, तब तुमने आकर उसका श्रवण किया था, इसलिए तुम्हारा पुत्र विश्रवा या विश्रवण कहलाएगा; इसमें कोई संदेह नहीं है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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