श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 2: महर्षि अगस्त्य के द्वारा पुलस्त्य के गुण और तपस्या का वर्णन तथा उनसे विश्रवा मुनि की उत्पत्ति का कथन  »  श्लोक 30-31h
 
 
श्लोक  7.2.30-31h 
 
 
परितुष्टोऽस्मि सुश्रोणि गुणानां सम्पदा भृशम्।
तस्माद् देवि ददाम्यद्य पुत्रमात्मसमं तव॥ ३०॥
उभयोर्वंशकर्तारं पौलस्त्य इति विश्रुतम्।
 
 
अनुवाद
 
  सुन्दरि! मैं तुम्हारे गुणों से अत्यधिक प्रसन्न हूँ। देवी! इसलिये आज मैं तुम्हें अपना पुत्र प्रदान करता हूँ, जो हम दोनों के कुल की प्रतिष्ठा बढ़ायेगा और पौलस्त्य नाम से विख्यात होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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