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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 2: महर्षि अगस्त्य के द्वारा पुलस्त्य के गुण और तपस्या का वर्णन तथा उनसे विश्रवा मुनि की उत्पत्ति का कथन
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श्लोक 3
श्लोक
7.2.3
तावत् ते रावणस्येदं कुलं जन्म च राघव।
वरप्रदानं च तथा तस्मै दत्तं ब्रवीमि ते॥ ३॥
अनुवाद
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रघुनंदन! इस वर्णन के क्रम में मैं पहले तुम्हें रावण के कुल, जन्म और उसे मिले हुए वरदान का प्रसंग सुनाता हूँ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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