श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 2: महर्षि अगस्त्य के द्वारा पुलस्त्य के गुण और तपस्या का वर्णन तथा उनसे विश्रवा मुनि की उत्पत्ति का कथन  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  7.2.19 
 
 
तां तु दृष्ट्वा तथाभूतां तृणबिन्दुरथाब्रवीत्।
किं त्वमेतत्त्वसदृशं धारयस्यात्मनो वपु:॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  त्रिणबिन्दु ने अपनी पुत्री की दयनीय दशा को देखकर उससे पूछा, "तुम्हारे शरीर की यह हालत कैसे हुई? तुमने जो रूप धारण किया है, वह तुम्हारे लिए बिल्कुल भी उचित और अनुकूल नहीं है।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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