श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 2: महर्षि अगस्त्य के द्वारा पुलस्त्य के गुण और तपस्या का वर्णन तथा उनसे विश्रवा मुनि की उत्पत्ति का कथन  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  7.2.18 
 
 
बभूव च समुद्विग्ना दृष्ट्वा तद्दोषमात्मन:।
इदं मे किंत्विति ज्ञात्वा पितुर्गत्वाऽऽश्रमे स्थिता॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  देखते ही देखते उसके शरीर में एक दोष दिखा। इससे घबराकर उसने सोचा, ‘मुझे क्या हो गया है?’ फिर वह चिंतित होकर अपने पिता के आश्रम में जाकर खड़ी हो गई॥ १८॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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