श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 2: महर्षि अगस्त्य के द्वारा पुलस्त्य के गुण और तपस्या का वर्णन तथा उनसे विश्रवा मुनि की उत्पत्ति का कथन  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  7.2.17 
 
 
सा तु वेदश्रुतिं श्रुत्वा दृष्ट्वा वै तपसो निधिम्।
अभवत् पाण्डुदेहा सा सुव्यञ्जितशरीरजा॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  वेदों की ध्वनि को सुनकर वह कन्या उस ओर गई और उसने तपों के भंडार पुलस्त्यजी के दर्शन किए। महर्षि की दृष्टि पड़ते ही उसके शरीर पर पीलापन छा गया और गर्भ के लक्षण प्रकट हो गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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