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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 7: उत्तर काण्ड
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सर्ग 2: महर्षि अगस्त्य के द्वारा पुलस्त्य के गुण और तपस्या का वर्णन तथा उनसे विश्रवा मुनि की उत्पत्ति का कथन
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श्लोक 11-12h
श्लोक
7.2.11-12h
देशस्य रमणीयत्वात् पुलस्त्यो यत्र स द्विज:।
गायन्त्यो वादयन्त्यश्च लासयन्त्यस्तथैव च॥ ११॥
मुनेस्तपस्विनस्तस्य विघ्नं चक्रुरनिन्दिता:।
अनुवाद
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पुलस्त्य ऋषि जहाँ रहते थे, वह स्थान बहुत ही मनोरम था। इसलिए सती-साध्वी कन्याएं प्रतिदिन वहाँ आकर गाती, वाद्य यंत्र बजाती और नृत्य करती थीं। इस प्रकार, वे महर्षि पुलस्त्य के तप में बाधा उत्पन्न करती थीं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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