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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 110: भाइयों सहित श्रीराम का विष्णुस्वरूप में प्रवेश तथा साथ आये हुए सब लोगों को संतानक- लोक की प्राप्ति
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श्लोक 5
श्लोक
7.110.5
दिव्यतेजोवृतं व्योम ज्योतिर्भूतमनुत्तमम्।
स्वयंप्रभै: स्वतेजोभि: स्वर्गिभि: पुण्यकर्मभि:॥ ५॥
अनुवाद
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आकाशमंडल दिव्य तेज से भरकर अनोखे प्रकाश से जगमगा रहा था। पुण्यकर्म करने वाले स्वर्गवासी स्वयं ही प्रकाशित होकर अपने तेज से उस स्थान को प्रकाशित कर रहे थे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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