श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 110: भाइयों सहित श्रीराम का विष्णुस्वरूप में प्रवेश तथा साथ आये हुए सब लोगों को संतानक- लोक की प्राप्ति  »  श्लोक 19-20h
 
 
श्लोक  7.110.19-20h 
 
 
यच्च तिर्यग्गतं किंचित् त्वामेवमनुचिन्तयत्।
प्राणांस्त्यक्ष्यति भक्त्या तत् संतानेषु निवत्स्यति॥ १९॥
सर्वैर्ब्रह्मगुणैर्युक्ते ब्रह्मलोकादनन्तरे।
 
 
अनुवाद
 
  तिर्यक योनि में जन्म लेने वाले पशु-पक्षियों में से कोई भी प्राणी यदि आपके प्रति भक्तिभाव से युक्त होकर अपने प्राणों का त्याग करता है, तो वह भी संतानक-लोकों में निवास करेगा। यह संतानकलोक ब्रह्मलोक के निकट है और ब्रह्मा के सत्य-संकल्पत्व आदि सभी उत्तम गुणों से युक्त है। आपके भक्तजन उसी संतानकलोक में निवास करेंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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