श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 10: रावण आदि की तपस्या और वर-प्राप्ति  »  श्लोक 43-44h
 
 
श्लोक  7.10.43-44h 
 
 
तथेत्युक्त्वा प्रविष्टा सा प्रजापतिरथाब्रवीत्॥ ४३॥
कुम्भकर्ण महाबाहो वरं वरय यो मत:।
 
 
अनुवाद
 
  ‘तब ‘बहुत अच्छा’ कहकर सरस्वती कुम्भकर्णके मुखमें समा गयीं। इसके बाद प्रजापतिने उस राक्षससे कहा—‘महाबाहु कुम्भकर्ण! तुम भी अपने मनके अनुकूल कोई वर माँगो’॥ ४३ १/२॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.