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श्लोक 43-44h
श्लोक
7.10.43-44h
तथेत्युक्त्वा प्रविष्टा सा प्रजापतिरथाब्रवीत्॥ ४३॥
कुम्भकर्ण महाबाहो वरं वरय यो मत:।
अनुवाद
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‘तब ‘बहुत अच्छा’ कहकर सरस्वती कुम्भकर्णके मुखमें समा गयीं। इसके बाद प्रजापतिने उस राक्षससे कहा—‘महाबाहु कुम्भकर्ण! तुम भी अपने मनके अनुकूल कोई वर माँगो’॥ ४३ १/२॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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