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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 7: उत्तर काण्ड
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सर्ग 1: श्रीराम के दरबार में महर्षियों का आगमन, उनके साथ उनकी बातचीत तथा श्रीराम के प्रश्न
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श्लोक 9-10
श्लोक
7.1.9-10
प्रतीहारस्ततस्तूर्णमगस्त्यवचनाद् द्रुतम्॥ ९॥
समीपं राघवस्याशु प्रविवेश महात्मन:।
नयेङ्गितज्ञ: सद्वृत्तो दक्षो धैर्यसमन्वित:॥ १०॥
अनुवाद
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तत्पश्चात् तुरंत महर्षि अगस्त्य की आज्ञा पाकर द्वारपाल महात्मा श्रीरघुनाथजी के समीप पहुँचा। वह नीति को अच्छी तरह से समझने वाला, इशारे से ही बात को समझ जाने वाला, सदाचारी, चतुर और धैर्यवान था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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