श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 1: श्रीराम के दरबार में महर्षियों का आगमन, उनके साथ उनकी बातचीत तथा श्रीराम के प्रश्न  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  7.1.41 
 
 
कथं पितुश्चाप्यधिको महाहवे
शक्रस्य जेता हि कथं स राक्षस:।
वरांश्च लब्धा: कथयस्व मेऽद्य
तत् पृच्छतश्चास्य मुनीन्द्र सर्वम्॥ ४१॥
 
 
अनुवाद
 
  कथं पिता से भी अधिक शक्तिशाली और इन्द्र पर विजय पाने वाला बना राक्षस इन्द्रजित्? और कैसे उसे बहुत सारे वर प्राप्त हुए? ये सब बातें मैं जानना चाहता हूँ; इसीलिए बार-बार पूछता हूँ। आज आप ये सारी बातें मुझे बताइए।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे प्रथम: सर्ग: ॥ १ ॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें पहला सर्ग पूरा हुआ ॥ १ ॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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