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श्लोक 37
श्लोक
7.1.37
अतिकायं त्रिशिरसं धूम्राक्षं च निशाचरम्।
अतिक्रम्य महावीर्यान् किं प्रशंसथ रावणिम्॥ ३७॥
अनुवाद
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अतिकाय, त्रिशिरा और निशाचर धूम्राक्ष जैसे महापराक्रमी वीरों को पराजित करके आप रावण के पुत्र इंद्रजीत की ही प्रशंसा क्यों कर रहे हैं?
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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