श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 1: श्रीराम के दरबार में महर्षियों का आगमन, उनके साथ उनकी बातचीत तथा श्रीराम के प्रश्न  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  7.1.37 
 
 
अतिकायं त्रिशिरसं धूम्राक्षं च निशाचरम्।
अतिक्रम्य महावीर्यान् किं प्रशंसथ रावणिम्॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  अतिकाय, त्रिशिरा और निशाचर धूम्राक्ष जैसे महापराक्रमी वीरों को पराजित करके आप रावण के पुत्र इंद्रजीत की ही प्रशंसा क्यों कर रहे हैं?
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.