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श्लोक 34-35h
श्लोक
7.1.34-35h
भगवन्त: कुम्भकर्णं रावणं च निशाचरम्॥ ३४॥
अतिक्रम्य महावीर्यौ किं प्रशंसथ रावणिम्।
अनुवाद
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पूज्यपाद महर्षियो! निशाचर रावण और कुम्भकर्ण दोनों ही महावीर्य थे, उनके पराक्रम के आगे सभी फीके थे। ऐसे में आप दोनों महान वीरों को लांघकर रावण के पुत्र इंद्रजीत की ही प्रशंसा क्यों कर रहे हैं?
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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