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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 1: श्रीराम के दरबार में महर्षियों का आगमन, उनके साथ उनकी बातचीत तथा श्रीराम के प्रश्न
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श्लोक 32-33h
श्लोक
7.1.32-33h
दत्त्वा पुण्यामिमां वीर सौम्यामभयदक्षिणाम्॥ ३२॥
दिष्टॺा वर्धसि काकुत्स्थ जयेनामित्रकर्शन।
अनुवाद
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वीर पुरुष! ककुत्स्थ कुल के आभूषण! शत्रुओं का संहार करने वाले श्रीरामजी! आपने यह पवित्र, मंगलदायी और सर्वोच्च शांतिमय वरदान प्रदान किया है। आज आपकी विजय को देखकर बधाई हो! निरंतर प्रगति करते रहना, कितना आनंद का विषय है!
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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