श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 1: श्रीराम के दरबार में महर्षियों का आगमन, उनके साथ उनकी बातचीत तथा श्रीराम के प्रश्न  »  श्लोक 14-15
 
 
श्लोक  7.1.14-15 
 
 
रामोऽभिवाद्य प्रयत आसनान्यादिदेश ह।
तेषु काञ्चनचित्रेषु महत्सु च वरेषु च॥ १४॥
कुशान्तर्धानदत्तेषु मृगचर्मयुतेषु च।
यथार्हमुपविष्टास्ते आसनेष्वृषिपुङ्गवा:॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  श्री राम ने ऋषियों का शुद्ध भाव से अभिवादन करके उन्हें बैठने के लिए आसन दिया। वो आसन सोने और चांदी से बने हुए थे तथा तरह-तरह के नक्काशीदार थे। साथ ही विशाल एवं विस्तृत थे। उन पर कुश का आसन रखकर ऊपर से मृगचर्म बिछाया गया था। उन आसनों पर वे श्रेष्ठ ऋषि यथायोग्य बैठ गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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