श्री राम ने ऋषियों का शुद्ध भाव से अभिवादन करके उन्हें बैठने के लिए आसन दिया। वो आसन सोने और चांदी से बने हुए थे तथा तरह-तरह के नक्काशीदार थे। साथ ही विशाल एवं विस्तृत थे। उन पर कुश का आसन रखकर ऊपर से मृगचर्म बिछाया गया था। उन आसनों पर वे श्रेष्ठ ऋषि यथायोग्य बैठ गए।