समुद्रं लङ्घयित्वा तु घोरं नदनदीपतिम्।
गतिं हनूमतो लोके को विद्यात् तर्कयेत वा॥ ११॥
बलान्यपरिमेयानि वीर्याणि च निशाचरा:।
परेषां सहसावज्ञा न कर्तव्या कथंचन॥ १२॥
अनुवाद
निशाचरो! समुद्रों और नदियों के स्वामी भयंकर महासागर को एक छलाँग में लाँघकर यहाँ तक पहुँचने वाले हनुमान जी की गति को इस संसार में कौन जान सकता है या उसका अनुमान लगा सकता है? शत्रुओं के पास असंख्य सेनाएँ हैं, उनमें असीम बल और शक्ति है। इस बात को तुम लोग अच्छी तरह समझ लो। दूसरों की शक्ति को भुलाकर किसी भी तरह सहसा उनकी अवहेलना नहीं करनी चाहिए।