श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 16: रावण के द्वारा विभीषण का तिरस्कार और विभीषण का भी उसे फटकारकर चल देना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  6.16.5 
 
 
नित्यमन्योन्यसंहृष्टा व्यसनेष्वाततायिन:।
प्रच्छन्नहृदया घोरा ज्ञातयस्तु भयावहा:॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  अन्योन्यसंहृष्टा: एक-दूसरे के संकटों पर हर्ष मनाने वाले, व्यसनेष्वाततायिन: बड़े आततायी होते हैं, प्रच्छन्नहृदया: अपने मनोभाव छिपाये रहते हैं, घोरा: क्रूर और भयंकर होते हैं। ज्ञातय: ऐसे लोग जाति के होते हैं और भयावहा: बहुत भयावह होते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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