श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 16: रावण के द्वारा विभीषण का तिरस्कार और विभीषण का भी उसे फटकारकर चल देना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  6.16.4 
 
 
प्रधानं साधकं वैद्यं धर्मशीलं च राक्षस।
ज्ञातयोऽप्यवमन्यन्ते शूरं परिभवन्ति च॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  निशाचर! इस बात पर विचार करना कि जो ज्येष्ठ होने के कारण राज्य पाकर सबमें प्रधान हो गया हो, राज्य कार्य को अच्छी तरह चला रहा हो और विद्वान्, धर्मशील तथा शूरवीर हो, उसे भी कुटुम्बीजन अपमानित करते हैं और अवसर पाकर उसे नीचा दिखाने की भी चेष्टा करते हैं। इसी प्रकार से प्रधान, साधक, वैद्य और धर्मशील राक्षस को भी उसके कुटुंब के लोग अपमानित करते हैं और परिभव करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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