श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 16: रावण के द्वारा विभीषण का तिरस्कार और विभीषण का भी उसे फटकारकर चल देना  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  6.16.2 
 
 
वसेत् सह सपत्नेन क्रुद्धेनाशीविषेण च।
न तु मित्रप्रवादेन संवसेच्छत्रुसेविना॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  भाई! दुश्मन के साथ या क्रोधित विषैले सांप के साथ रहना पड़े तो रह लो; लेकिन जो मित्र कहलाता है, परंतु शत्रु की सेवा करता है, उसके साथ कभी मत रहो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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