स त्वं भ्रान्तोऽसि मे राजन् ब्रूहि मां यद् यदिच्छसि।
ज्येष्ठो मान्य: पितृसमो न च धर्मपथे स्थित:।
इदं हि परुषं वाक्यं न क्षमाम्यग्रजस्य ते॥ १९॥
अनुवाद
हे राजन्! तुम भ्रमित हो। तुम्हारी बुद्धि भ्रम में पड़ी हुई है। तुम धर्म के मार्ग पर नहीं हो। यों तो मेरे बड़े भाई होने के कारण तुम मेरे लिए पिता के समान आदरणीय हो। इसलिए मुझे जो कुछ भी कहना है, कह लो लेकिन अग्रज होने पर भी तुम्हारे इस कठोर वचन को मैं कदापि नहीं सह सकता।