श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 16: रावण के द्वारा विभीषण का तिरस्कार और विभीषण का भी उसे फटकारकर चल देना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  6.16.13 
 
 
यथा मधुकरस्तर्षाद् रसं विन्दन्न तिष्ठति।
तथा त्वमपि तत्रैव तथानार्येषु सौहृदम्॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘जैसे भौंरा बड़ी चाहसे फूलोंका रस पीता हुआ भी वहाँ ठहरता नहीं है, उसी प्रकार अनार्योंमें सुहृज्जनोचित स्नेह नहीं टिक पाता है। तुम भी ऐसे ही अनार्य हो॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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