श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 16: रावण के द्वारा विभीषण का तिरस्कार और विभीषण का भी उसे फटकारकर चल देना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  6.16.1 
 
 
सुनिविष्टं हितं वाक्यमुक्तवन्तं विभीषणम्।
अब्रवीत् परुषं वाक्यं रावण: कालचोदित:॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण के सिर पर काल का साया मंडरा रहा था, जिस कारण वह हितकारी और सुंदर बात कहने पर भी विभीषण से कठोर स्वर में बोला-॥ १॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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