श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 14: विभीषण का राम को अजेय बताकर उनके पास सीता को लौटा देने की सम्मति देना  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  6.14.9 
 
 
प्रहस्तवाक्यं त्वहितं निशम्य
विभीषणो राजहितानुकाङ्क्षी।
ततो महार्थं वचनं बभाषे
धर्मार्थकामेषु निविष्टबुद्धि:॥ ९॥
 
 
अनुवाद
 
  विभीषण राजा रावण के सच्चे हितैषी थे। धर्म, अर्थ और काम में उनकी बुद्धि कुशल थी। प्रहस्त के अहितकर वचनों को सुनकर उन्होंने महात्माओं का अहित न करने के कारण महान अर्थ से युक्त बात कही।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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