श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 14: विभीषण का राम को अजेय बताकर उनके पास सीता को लौटा देने की सम्मति देना  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  6.14.2 
 
 
वृतो हि बाह्वन्तरभोगराशि-
श्चिन्ताविष: सुस्मिततीक्ष्णदंष्ट्र:।
पञ्चाङ्गुलीपञ्चशिरोऽतिकाय:
सीतामहाहिस्तव केन राजन्॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  राजन! आपके गले में यह विशालकाय सर्प सीता किसने बाँध दिया है? उसके शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग उसका हृदय है, जो चिन्ता से भरा है। उसके तीखे नुकीले दाँत उसकी सुंदर मुस्कान हैं और उसके पाँच सिर उसके प्रत्येक हाथ की पाँच-पाँच उँगलियाँ हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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