असंख्य सर्पों के शरीर से आवेष्टिन कर उग्र बलशाली सर्प ने इस राजा को पराक्रमी बलपूर्वक अपने शरीर से बाँध रखा है। इस महाशक्तिशाली नाग से इसे बचाकर प्राण संकट से मुक्त करो। (अर्थात् श्रीरामचन्द्रजी के साथ वैर बाँधना महान् सर्प के शरीर से आवेष्टित होने के समान है। इस भाव को व्यक्त करने के कारण यहाँ निदर्शना अलंकार व्यंग्य है।)