श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 14: विभीषण का राम को अजेय बताकर उनके पास सीता को लौटा देने की सम्मति देना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  6.14.18 
 
 
अनन्तभोगेन सहस्रमूर्ध्ना
नागेन भीमेन महाबलेन।
बलात् परिक्षिप्तमिमं भवन्तो
राजानमुत्क्षिप्य विमोचयन्तु॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  असंख्य सर्पों के शरीर से आवेष्टिन कर उग्र बलशाली सर्प ने इस राजा को पराक्रमी बलपूर्वक अपने शरीर से बाँध रखा है। इस महाशक्तिशाली नाग से इसे बचाकर प्राण संकट से मुक्त करो। (अर्थात् श्रीरामचन्द्रजी के साथ वैर बाँधना महान् सर्प के शरीर से आवेष्टित होने के समान है। इस भाव को व्यक्त करने के कारण यहाँ निदर्शना अलंकार व्यंग्य है।)
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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