श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 8: हनुमान् जी के द्वारा पुनः पुष्पक विमान का दर्शन  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  5.8.6 
 
 
विशेषमालम्ब्य विशेषसंस्थितं
विचित्रकूटं बहुकूटमण्डितम्।
मनोऽभिरामं शरदिन्दुनिर्मलं
विचित्रकूटं शिखरं गिरेर्यथा॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  विशेष गति से उड़ते हुए वह पुष्पक विमान आकाश में एक खास जगह पर स्थित था। उसमें हैरान करने वाली और अनोखी चीज़ों का संग्रह था। कई सारे कमरों की वजह से उसकी शोभा और भी बढ़ गई थी। वह शरद ऋतु के चाँद की तरह साफ और मन को खुश करने वाला था। जिस तरह किसी पर्वत की सबसे ऊँची चोटी पर छोटी-छोटी चोटियाँ होती हैं, उसी तरह इस अद्भुत पुष्पक विमान में भी कई शिखर थे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.