स तस्य मध्ये भवनस्य संस्थितो
महद्विमानं मणिरत्नचित्रितम्।
प्रतप्तजाम्बूनदजालकृत्रिमं
ददर्श धीमान् पवनात्मज: कपि:॥ १॥
अनुवाद
धीमान पवन कुमार कपिवर हनुमान जी रावण के भवन के मध्यभाग में खड़े होकर मणि और रत्नों से जटित और तपे हुए सुवर्णमय गवाक्षों से युक्त उस विशाल विमान को पुनः देख रहे थे।