श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 43: हनुमान जी के द्वारा चैत्यप्रासाद का विध्वंस तथा उसके रक्षकों का वध  »  श्लोक 8-11
 
 
श्लोक  5.43.8-11 
 
 
अस्त्रविज्जयतां रामो लक्ष्मणश्च महाबल:।
राजा जयति सुग्रीवो राघवेणाभिपालित:॥ ८॥
दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्टकर्मण:।
हनूमान् शत्रुसैन्यानां निहन्ता मारुतात्मज:॥ ९॥
न रावणसहस्रं मे युद्धे प्रतिबलं भवेत्।
शिलाभिश्च प्रहरत: पादपैश्च सहस्रश:॥ १०॥
धर्षयित्वा पुरीं लङ्कामभिवाद्य च मैथिलीम्।
समृद्धार्थो गमिष्यामि मिषतां सर्वरक्षसाम्॥ ११॥
 
 
अनुवाद
 
  उस समय हनुमानजी ने फिर से यह घोषणा की- "हथियारों के जानकार श्रीराम और महाबली लक्ष्मण की जय हो। श्रीरघुनाथजी द्वारा रक्षित राजा सुग्रीव की भी जय हो। मैं अनायास ही महान पराक्रम करने वाले कोसलराज श्रीरामचंद्रजी का सेवक हूँ। मेरा नाम हनुमान है। मैं वायु का पुत्र और शत्रु सेना का संहार करने वाला हूँ। जब मैं हजारों पेड़ों और पत्थरों से प्रहार करने लगूँगा, उस समय हजारों रावण मिलकर भी युद्ध में मेरे बल की बराबरी या मुकाबला नहीं कर सकते। मैं लंकापुरी को तहस-नहस कर दूँगा और मिथिलेशकुमारी सीता को प्रणाम करने के बाद सभी राक्षसों को देखते हुए अपना काम पूरा करके चला जाऊँगा।"
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.