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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 43: हनुमान जी के द्वारा चैत्यप्रासाद का विध्वंस तथा उसके रक्षकों का वध
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श्लोक 7
श्लोक
5.43.7
तस्यास्फोटितशब्देन महता श्रोत्रघातिना।
पेतुर्विहंगमास्तत्र चैत्यपालाश्च मोहिता:॥ ७॥
अनुवाद
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ज़ोर से होने वाली वह तोड़-फोड़ का शब्द कानों को बहरा कर देने वाला था। इससे वहाँ के पक्षी और प्रासादरक्षक मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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