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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 5: सुन्दर काण्ड
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सर्ग 43: हनुमान जी के द्वारा चैत्यप्रासाद का विध्वंस तथा उसके रक्षकों का वध
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श्लोक 4
श्लोक
5.43.4
आरुह्य गिरिसंकाशं प्रासादं हरियूथप:।
बभौ स सुमहातेजा: प्रतिसूर्य इवोदित:॥ ४॥
अनुवाद
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गिरिशिखर समान उस विशाल प्रासाद पर चढ़कर श्री हनुमान जी तेजस्वी सूर्य के उदय की भाँति चमकने लगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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