|
|
|
श्लोक 5.43.25  |
|
 |
|
नेयमस्ति पुरी लङ्का न यूयं न च रावण:।
यस्य त्विक्ष्वाकुवीरेण बद्धं वैरं महात्मना॥ २५॥ |
|
|
अनुवाद |
|
अब न तो यह लंका नगरी बची रहेगी, न तुम लोग रहोगे और न वह रावण ही रह सकेगा, जिसने इक्ष्वाकुवंश के वीर एवं महात्मा श्रीराम के साथ वैर बाँध रखा है। |
|
|
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये सुन्दरकाण्डे त्रिचत्वारिंश: सर्ग:॥ ४३॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके सुन्दरकाण्डमें तैंतालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ४३॥ |
|
|
|
|