वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 5: सुन्दर काण्ड
»
सर्ग 43: हनुमान जी के द्वारा चैत्यप्रासाद का विध्वंस तथा उसके रक्षकों का वध
»
श्लोक 14-15h
श्लोक
5.43.14-15h
विसृजन्तो महाकाया मारुतिं पर्यवारयन्।
ते गदाभिर्विचित्राभि: परिघै: काञ्चनाङ्गदै:॥ १४॥
आजग्मुर्वानरश्रेष्ठं बाणैश्चादित्यसंनिभै:।
अनुवाद
play_arrowpause
सुरसा के विशालकाय राक्षसों ने उन सभी अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करते हुए वहाँ पवनकुमार हनुमान जी को घेर लिया। विचित्र गदाओं, सोने के पत्र जड़े हुए परिघों और सूर्यतुल्य तेजस्वी बाणों से सुसज्जित हो वे सब-के सब उन वानरश्रेष्ठ हनुमान पर टूट पड़े।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.