श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 43: हनुमान जी के द्वारा चैत्यप्रासाद का विध्वंस तथा उसके रक्षकों का वध  »  श्लोक 14-15h
 
 
श्लोक  5.43.14-15h 
 
 
विसृजन्तो महाकाया मारुतिं पर्यवारयन्।
ते गदाभिर्विचित्राभि: परिघै: काञ्चनाङ्गदै:॥ १४॥
आजग्मुर्वानरश्रेष्ठं बाणैश्चादित्यसंनिभै:।
 
 
अनुवाद
 
  सुरसा के विशालकाय राक्षसों ने उन सभी अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करते हुए वहाँ पवनकुमार हनुमान जी को घेर लिया। विचित्र गदाओं, सोने के पत्र जड़े हुए परिघों और सूर्यतुल्य तेजस्वी बाणों से सुसज्जित हो वे सब-के सब उन वानरश्रेष्ठ हनुमान पर टूट पड़े।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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