श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 43: हनुमान जी के द्वारा चैत्यप्रासाद का विध्वंस तथा उसके रक्षकों का वध  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  5.43.12 
 
 
एवमुक्त्वा महाकायश्चैत्यस्थो हरियूथप:।
ननाद भीमनिर्ह्रादो रक्षसां जनयन् भयम्॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  तदनुसार विशाल शरीरधारी, वैभवशाली प्रासाद में स्थित वानरों के नायक श्री हनुमान जी राक्षसों में भय उत्पन्न करते हुए भयानक, कराल शब्दों से गर्जना करने लगे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.