श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 4: हनुमान जी का लंकापुरी एवं रावण के अन्तःपुर में प्रवेश  »  श्लोक 1-2
 
 
श्लोक  5.4.1-2 
 
 
स निर्जित्य पुरीं लंकां श्रेष्ठां तां कामरूपिणीम्।
विक्रमेण महातेजा हनूमान् कपिसत्तम:॥ १॥
अद्वारेण महावीर्य: प्राकारमवपुप्लुवे।
निशि लंकां महासत्त्वो विवेश कपिकुञ्जर:॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  महातेजस्वी और महाबली कपिराज हनुमान ने अपने अद्भुत पराक्रम से उस श्रेष्ठ लंकापुरी पर विजय प्राप्त की, जो इच्छानुसार अपना रूप बदल सकती थी। रात के समय में उन्होंने बिना किसी द्वार के ही लंका की चहारदीवारी को फाँदकर लंका के अंदर प्रवेश किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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