श्रीमद् वाल्मीकि रामायण » काण्ड 5: सुन्दर काण्ड » सर्ग 32: सीताजी का तर्क-वितर्क » श्लोक 1-2 |
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| | श्लोक 5.32.1-2  | |  | | तत: शाखान्तरे लीनं दृष्ट्वा चलितमानसा।
वेष्टितार्जुनवस्त्रं तं विद्युत्संघातपिंगलम्॥ १॥
सा ददर्श कपिं तत्र प्रश्रितं प्रियवादिनम्।
फुल्लाशोकोत्कराभासं तप्तचामीकरेक्षणम्॥ २॥ | | | अनुवाद | | मैंने देखा कि एक वानर पेड़ की शाखा पर बैठा है जो कि अत्यधिक लाल और पीले रंग का है और उसके नेत्र चमक रहे हैं। वह बहुत ही विनम्र और मधुरभाषी लग रहा है। | |
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