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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 21: सीताजी का रावण को समझाना और उसे श्रीराम के सामने नगण्य बताना
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श्लोक 17
श्लोक
5.21.17
अहमौपयिकी भार्या तस्यैव च धरापते:।
व्रतस्नातस्य विद्येव विप्रस्य विदितात्मन:॥ १७॥
अनुवाद
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मैं उस पृथ्वी के स्वामी रघुनाथजी की ही भार्या बन सकती हूँ, जिस प्रकार आत्मज्ञानी ब्राह्मणों को वेद-विद्या का ज्ञान है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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