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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 21: सीताजी का रावण को समझाना और उसे श्रीराम के सामने नगण्य बताना
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श्लोक 12
श्लोक
5.21.12
तथैव त्वां समासाद्य लंका रत्नौघसंकुला।
अपराधात् तवैकस्य नचिराद् विनशिष्यति॥ १२॥
अनुवाद
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इस प्रकार से रत्न-सम्पदा से भरी लंका तेरे हाथों में आकर अब बहुत जल्दी तेरे ही अपराध के कारण नष्ट हो जाएगी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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