विचित्राणि च माल्यानि चन्दनान्यगुरूणि च।
विविधानि च वासांसि दिव्यान्याभरणानि च॥ ९॥
महार्हाणि च पानानि शयनान्यासनानि च।
गीतं नृत्यं च वाद्यं च लभ मां प्राप्य मैथिलि॥ १०॥
अनुवाद
मिथिलेशकुमारी! तुम मुझे पाकर विविध प्रकार की सुंदर मालाएँ, चंदन, अगरबत्ती, विभिन्न प्रकार के वस्त्र, अद्भुत आभूषण, कीमती पेय, आरामदायक बिस्तर और बैठने की जगह, सुरीली संगीत, मनोरंजक नृत्य और संगीतमय वाद्यों का आनंद उठाओ।