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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 20: रावण का सीताजी को प्रलोभन
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श्लोक 33
श्लोक
5.20.33
यानि वैश्रवणे सुभ्रु रत्नानि च धनानि च।
तानि लोकांश्च सुश्रोणि मया भुङ्क्ष्व यथासुखम्॥ ३३॥
अनुवाद
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सुभ्र और सुश्रोणि! कुबेर के पास मौजूद सभी मूल्यवान रत्न और धन, साथ ही सभी लोकों का आनंद तुम मेरे साथ सुखपूर्वक लो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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